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शिक्षा पुरस्कार घोटाला: अब नहीं चलेगा ‘सम्मान के नाम पर धंधा’
- Reporter 12
- 27 Dec, 2025
अमरदीप नारायण प्रसाद समस्तीपुर
सम्मान बिकेगा तो शिक्षा हार जाएगी
पटना:शिक्षा किसी भी समाज की आत्मा होती है। यही वह क्षेत्र है जहाँ से नैतिकता, ईमानदारी और जिम्मेदारी जैसे मूल्यों का जन्म होता है। लेकिन विडंबना यह है कि आज उसी पवित्र व्यवस्था में “पुरस्कार” जैसे शब्द को कुछ स्वार्थी तत्वों ने खुलेआम व्यापार बना दिया है। यह महज एक शहर या राज्य की समस्या नहीं, बल्कि देशभर में फैलती एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जो शिक्षा की गरिमा को भीतर से खोखला कर रही है।
सम्मान का जाल: पहले तारीफ, फिर वसूली
कई तथाकथित शैक्षणिक संगठन, फाउंडेशन और अवॉर्ड कमेटियाँ शिक्षकों को अचानक फोन, व्हाट्सएप या ई-मेल के जरिए यह बताती हैं कि उनका चयन राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए हुआ है। शुरुआत में यह संदेश गर्व और खुशी से भर देता है, लेकिन इसके बाद जो सच सामने आता है, वह अपमानजनक होता है।
फीस के नाम पर ‘सम्मान टैक्स’
पुरस्कार समारोह से पहले रजिस्ट्रेशन फीस, प्रोसेसिंग चार्ज, डॉक्यूमेंटेशन फीस या सेरेमनी कॉस्ट के नाम पर हजारों से लेकर लाखों रुपये तक की मांग की जाती है। कई शिक्षक सामाजिक दबाव, बदनामी के डर या “सम्मान छूट जाने” की आशंका में यह राशि देने को मजबूर हो जाते हैं।
यहीं से सम्मान एक सौदा बन जाता है।
जहाँ पैसा अनिवार्य, वहाँ योग्यता बेमानी
शिक्षाविदों का स्पष्ट मत है कि जिस पुरस्कार के लिए भुगतान जरूरी हो, वहाँ चयन की निष्पक्षता स्वतः समाप्त हो जाती है। यदि कोई संस्था वास्तव में किसी शिक्षक को सम्मानित करना चाहती है, तो वह बिना किसी शुल्क, शर्त और सौदे के सम्मान दे।
शिक्षक नहीं ग्राहक, शिक्षा नहीं बाजार
इन आयोजनों का सबसे खतरनाक प्रभाव यह है कि शिक्षक को “ग्राहक” और शिक्षा को “बाजार” बना दिया गया है। इससे न केवल शिक्षक की सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है, बल्कि समाज में यह संदेश जाता है कि सम्मान खरीदा जा सकता है।
टीचर्स ऑफ बिहार का खुला विरोध
इसी पृष्ठभूमि में टीचर्स ऑफ बिहार ने शिक्षा पुरस्कार घोटाले के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है।
संगठन के फाउंडर शिव कुमार और टेक्निकल टीम लीडर ई. शिवेंद्र प्रकाश सुमन ने दो टूक कहा—
“सम्मान को व्यापार बनाना शिक्षकों का नहीं, पूरी शिक्षा व्यवस्था का अपमान है। जो पैसे लेकर पुरस्कार देते हैं, वे शिक्षा की सेवा नहीं, उसका शोषण कर रहे हैं।”
सशुल्क पुरस्कारों पर रोक की मांग
प्रदेश प्रवक्ता रंजेश कुमार और प्रदेश मीडिया संयोजक मृत्युंजय कुमार ने संयुक्त बयान में कहा कि ऐसे फर्जी और सशुल्क पुरस्कार आयोजनों पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। उन्होंने शिक्षकों से अपील की कि वे किसी भी ऐसे सम्मान को अस्वीकार करें, जिसमें किसी भी प्रकार की फीस ली जाए।
चमक के पीछे छुपा मौन शोषण
भव्य मंच, बड़े-बड़े बैनर, चमचमाती ट्रॉफी और सोशल मीडिया प्रचार के पीछे शिक्षक का मौन शोषण छुपा होता है। यह शोषण तब तक चलता रहेगा, जब तक शिक्षक स्वयं ‘ना’ कहना नहीं सीखेंगे।
स्पष्ट संदेश: पैसा लिया तो सम्मान नहीं
टीचर्स ऑफ बिहार का साफ संदेश है—
“सम्मान देना है तो बिना पैसे दीजिए,
पैसे लेने हैं तो उसे सम्मान मत कहिए।”
NoPaidAwards अभियान तेज
इस मुद्दे को जन-जन तक पहुँचाने के लिए संगठन ने सोशल मीडिया पर #NoPaidAwards अभियान को तेज करने का आह्वान किया है, ताकि शिक्षक, अभिभावक और समाज इस फर्जी व्यवस्था को पहचान सकें।
सच्चा सम्मान वही, जो गरिमा बढ़ाए
विशेषज्ञों का मानना है कि सच्चा पुरस्कार वही है जो शिक्षक के कार्य की गरिमा बढ़ाए, न कि उसकी जेब हल्की करे। जब तक यह अंतर स्पष्ट नहीं होगा, तब तक शिक्षा के नाम पर ऐसे घोटाले जन्म लेते रहेंगे।
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